Sunday 16 June 2013

मेरे पास वाला घर झाबर ताऊ जी का ही है  । झाबर ताऊ जी हमारे  मोहल्ले में सबसे पहले उठते हैं ,झाबर ताऊ जी उठ कर स्नान करते हैं । फिर कुछ अनाज , रोटियां लेकर मन्दिर जाते हैं भगवान के दर्शन करते है पूजा -पाठ करते हैं   वहां पर पशुओं  को रोटियां जानवरों को अनाज डालते हैं । घर आते  ही  धार्मिक पत्रिकाओं , किताबों में खो जाते हैं आये -गए लोगों को खूब ज्ञान बांटते है, सभी ताउजी को इज्जत  हैं । झाबर ताउजी के पास अच्छी सम्पति  है सभी सुख-सुविधायें है दो कारें ,बेटे ,पोतों से भरा घर यूं कहूँ की किसी चीज की कमी नहीं ,गाँव में जाने -माने पैसे वालो में ताऊ जी का नाम सबसे ऊपर । वैसे गाँव में हर सुविधा है ,एक बार हुआ यूं मोहल्ले  में पपू चाचा  का बच्चा अचानक बीमार हो गया पपू चाचा समान्य परिवार से हैं ।डॉक्टर ने कहा मेरी समझ से बाहर है आप इसे शहर ले जाओ अभी जल्दी ,चाचा जी  ने झट से साधन देखा ,साधन मीला नहीं गाँव में शादियों का दौर था ,मेरे  पिताजी ने कहा झाबर के घर में दो कारें है ,पूछ लो और तो कोई  चारा नहीं हैं । चाचा ने ताउजी को अपनी व्यथा  सुनाई , झाबर ताऊ ने स्पष्ट मना कर दिया हम नही जा सकते हैं  इतनी रात में ,बेटे दिन भर खेत में काम करते है थके हुये हैं । पिताजी बोले कार मैं चला लूँगा ताऊ बोले हम अपना साधन किसी दुसरे को नहीं सोंपते हैं । जैसे तैसे करके बच्चे को बाइक लेकर गए , डॉक्टर बोला अगर कुछ देर हो जाती तो मैं नहीं संभाल  पाता । अब तो मोहल्ले का कोई आदमी झाबर ताऊ चौखट की और नहीं देखता है । मेरी नजरों में ताऊ जी के लिए बहुत इज्जत थी ,जब माता जी ने मेरे को शहर से आने के बाद ये बात बतायी ,मेरी नजर में ढोंगी ताऊ जी बन गए । मंदिर जाना अनाज -दाना  पूजा -पाठ किस लिए , आप अपनो के काम ना आये ,...................  बेनीवाल 

Friday 31 May 2013

राखी ना आयी …बहिन की

मैं गर्मी की छूट्टीयों  मैं अपनी भुआ जी के पास चला जाता था एक महिने पूरी मौज-मस्ती करते भुआ के पड़ौस में सरोज चाची जी रहते थे । जो भुआ जी की अच्छी सहेली थी भुआ जी के साथ एक-दो बार हमारे घर आये हुये थे। वो हमारे परिवार से अच्छी तरह से वाकिफ थे, मेरे को अपने सगे बेटे जैसा मानते थे ।मैं भी भुआ जी ओर सरोज चाची जी में कोई फर्क नही देखता था , चाचा जी भी फूंफा जी के अच्छे दोस्त थे सगे भाई जैसे ।दोनो परिवार एक ही सूत्र पर जीते जो तेरा है वो मेरा ,जो मेरा है वो तेरा ।रोहन भुआ जी का लड़का सरोज चाची जी की बिटिया रेणू के साथ ही पढता था ।
रेणू जब छोटी सी थी प्यारी सी गुड़ीया हमारे साथ खेलती थी ना मेरे सगी बहिन थी ओर ना ही भुआ जी के लड़की थी तो प्यार मिलना तो स्वभाविक सी बात है । मेरे लिये वो हर रक्षाबंधन पर राखी भेजती थी ,मैं भी उपहार भेजता था। मैं अपनी स्नातकोत्तर करने विदेश (कनाडा)चला गया ,मुझे भारत सरकार की ओर से फेलोसिप मिली थी ,पढाई पुरी होते ही मेरी वहां पर ही अच्छी नौकरी लग गई थी मैं वहीं से हाल-चाल पूछता रहता सबके मैं कई साल बाद विदेश (कनाडा)से आया । मैं भुआ जी के पास गया सबकुछ बदल गया था शक्लें भौतिक परिवेश पर जो प्यार प्रेम था अब वही था दस साल बाद ,मेरे जाते ही सब खुश हुये मेरे आने की खबर किसी को नही थी । एक उत्सव से कम नही था माहौल ,खाना-पीना हुआ बातें चलने लगी मैनें अपनी सुनाई उन सब ने अपनी-अपनी मैं    मैंने चाची से कहा था रेणू की शादी क्यों नही कर देते अब आप, रेणू की उम्र भी हो गई है शादी लायक और अब सरकारी महकमे नौकरी भी तो लग गई है ।चाची बोली आप सही कह रहे हो बेटा ,अभी अच्छा लड़का देख रहे हैं । दो-चार जगह देखा पर कहीं लड़का पसंद ना आया कहीं पर घर - परिवार ,ये भी तो देखनें पड़ते है ।चाची भी सही कह रही थी आखिर रिस्ते भी तो सात पीढीयों की दोस्ती होती है ,सोच-विचार गहन-जांच परख के बाद ही निर्ण्य लिया जाता है ।रेणू इकलोती सन्तान जो थी चाचा-चाची की  रेणू को एक बगीचे की तरह सिंचा ।रेणू को अच्छे संस्कार दिए पैसे और भौतिकता से रेणू हमेशा दूर रही बचपन से ही पढाई से दोस्ती कर ली थी। रेणू का चाचा-चाची ने पुरा ख्याल रखा  हर आवश्यकता को पुरा किया ,  अच्छी शिक्षा दिलाई। रेणू भी अपने माता-पिता की मेहनत को बेकार ना जाने दिया ,रेणू की मेहनत रंग लायी सरकारी अध्यापिका लग गयी है पास ही के गाँव में ड्यूटी आ गयी । चाचा-चाची के त्याग का सीला मिला ।चाचा जी ने रेणू को एक्टिवा दिला दी जिससे रेणू को आने-जाने में कोई परेशानी ना आये।
रेणू राजपत्रित अधिकारी बनना चाहती थी ,तो अध्यापिका बनने के बाद भी रेणू ने  पढाई  जारी रखी। माता जी का घर के काम में सहयोग करती । मौहल्ले के लोग ओर रिस्तेदार  अपने बच्चों को रेणू की मिसाल देते थे। रेणू सादगी की मिसाल ,मिलनसार सबके दिलों में अपना एक कोना ।जब भी हम एक साथ बैठते तो सबके दु:ख सुख की चर्चा कुरीतियों पर तो यूँ बरसती क्या कहूँ ।मेरी कलाई को सौभाग्य मिला था रेणू जैसी बहिन की राखी बंधती थी ।  रेणू बोली मेरी शादी में नही आया तो समझो राखी नही आयेगी भाईजी मैं वादा किया पक्का आऊँगा तेरे लिये ढेरों उपहार भी चाचा-चाची भी बोले आना बेटा तेरे को ओर रोहन को ही पुरे काम संभालने है भुआ जी बोले आयेगा नही तो जायेगा कहां ये कह सब ने मन कच्चे कर लिये मैं भी रोक ना पाया । मेरे को जल्दी वापस जाना था तो इसलिये दो दिन रुक मैं चला गया ।समाचार मिला रेणू के लिये लड़का देख लिया है ।राजपत्रित अधिकारी है ,खुब पढा लिखा ,अच्छा परिवार है ,अच्छी जमीन जायदाद है । 10 जनवरी को शादी है मेरे को उस दिन भी इतनी खुशी नही हुई थी जब मेरे को फेलोसिप मिली थी । मैनें रेणू को बधाई ओर उपहार भेजे । मेरे को यहां आये हुये चार महिने ही हुये थे ।मैनें कोशिशें शुरु कर दी थी …मेरे को आश्वासन मिलते रहे। जैसे वक्त नजदीक आता गया ।मेरी मेहनत के चारों ओर पानी लग चुका था । आखिर पानी फिर गया ,ओर लाखों कोशिशें बेकार गयी यहां तक की मेरा नौकरी छोड़ने का प्रस्ताव भी ना मंजूर कर दिया । जनवरी लगते ही फोन शुरु हो गये रेणू ,भुआ जी,चाचा जी ,सरोज चाची जी के सभी को बोला आ रहा हूँ बहाने भी खत्म हो जाते हैं ।साहस जुटा कर दो दिन पहले रोहन से बोला मैं नही पहुँच पाऊँगा राम कहानी गायी। वो समझ गया मान गया मैनें कहा बता देना ,उसका भी मन कच्चा हो गया । कई रात सो ना पाया काम में मन ना लगा।खुद को बताना खुद ही सुनना को सुने, कोन जाने ।धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया ,एक दिन ओफिस में बैठा खुद की ई-मेल चैक कर रहा था रेणू का मेल ,भाई जी मैं जानती हूँ आप नही आ पाये । रोहन ने आपकी गैरहाजिरी में सब संभाल लिया ,आपको हम सभी ने बहुत मिस किया ,मुझे एक भाई की कमी महसूस नही होने दी ,आपकी कमी हमे खली आप होते तो …बहिन की खुशी में भाई जितने हो उतने ही कम होते हैं । मेरे को अच्छा ससुराल मिल गया है सभी मेरे को बहुत प्यार करते हैं । मुझे मेरे  माता-पिता की कमी महसूस नही होने देते है यहां मैं अपनी पढाई भी आराम से कर सकती हूँ कोई रोक-टौक नही हैं । बहुत समझदार लोग हैं आपके जीजू भी मुझे बहुत प्यार करते हैं । उनको किसी भी प्रकार की लत नही हैं । हमारे परिवार में आपके जीजू ,मेरी एक नन्द ,मेरी सास ,मेरे ससुर ,दो नौकर हैं । आप जल्दी आना भाई जी ओर सीधे यहीं आना हम यहीं से गाँव चलेंगे । मैं बहुत खुश हूं भाई जी ,अभी स्कूल जा रही हू ओर बाद में लिखती हूं …………

Sunday 19 May 2013


मुझे दबा दो ,गहरे गढ्ढों में
सुला दो कंटीले बिस्तरों में
रख दो पत्थर मुझ पर …

रख देना जमीन की आखरी सतह में
कल को याद ना आये मेरी
आते-जाते किसी को नजर ना आये
मेरी छोटी सी देह …

दिख गयी मैं आते-जाते
तोहिन बड़ी होगी तुम्हारी

राहत दे तुमको मेरी
 ये छोटी सी जिन्दगी
राहों पर आये तुम्हारी जिंदगी
मुझे मिटाने से

खुशी मेरी और क्या होगी ज्यादा

तुम्हारे लिये तो हजार जन्म भी कम है मेरे…

गीला तुम से नही है उस कोख से है
बदला लिया होगा मुझसे किसी गहरी रंजिश का

या मुझसे गहरा है उससे रिस्ता मेरे भाई का…
दिन वो दूर नहीं है हालात ये रहे तो…

सुरज की रोशनी चाँद की चाँदनी
महकती हवा मीठा पानी नसीब ना होगा
मेरा ही नाम पृथ्वी 

है……तुम्हारे लिये मैं बेटी…………BENIWAL
मैं एक शब्द हूँ ,तुम भी तो एक शब्द हो ...चलो समा जायें एक वाक्य में ...नयी आयु के लीये ..BENIWAL

हरा ना पाया वो लुहार को …


ॠतु कोई सी 
भी हो …
मौसम कैसा भी हो …
आंधी- तूफान ,सर्दी - गर्मी
बरसात या फिर हो सुखा

जब गुजरता हूँ उँची गली से
टिक-टिक की आवाज आती रहती है

प्यारी भाषा, हँसते मुखड़े ……
अनजान तो समझे मदारी का खेल

हम वासी हैं वहाँ के सो सब जानें …

मुकाबला चला आ रहा है …
राणा के वक्त से अबतक

दोनों के दरमियान …
लुहार लोहे को लाल करता है
लोहा लुहार को लाल कर देता है

लाल सुर्ख़ लोहा देख लुहार हँसता है
लाल सुर्ख मुखड़ा देख लोहा हँसता है

हार मानने को तैयार ना एक भी

एक रंग बदल लेता है …
एक पसीने से तर हो जाता है …

कभी - कभार ठण्डी रातों में भी टिक-टिक का
संगीत सुनाई देता है …

लोहे का दर्द तो जान लिया है आज
उसके अपनों ने …

तकनीकी का सहारा मिल गया है उसे तो आज…
कितना खुश है वो आज

हरा ना पाया वो लुहार को …

वो तो आज भी बैठा है
गाँव-शहर की गलीयों
अपनों के इंतजार में
उसका भी कोई दर्द जाने
राणा की तरह उसे भी कोई अपना माने ……………BENIWAL

Tuesday 14 May 2013

एक झुंड

एक झुंड गुजरा …
मेरे घर के आगे से
औरतों का …
हँसती , बातें करतीं
सर पर तसला …
तसले में औजार …

उनमें से कुछ को
मेरी नजरें जानती
मैं पूछ बैठा अपनी माँ से
ये औरते कहाँ जा रहीं है
नरेगा में पसीना बहाने जा रहीं है
गाँव की कांकड़ में ……

माँ इनके श्रीमान …क्यों ना जाते उस ओर
बेटा ठेकों ,पीपलों ,नुक्कड़ों पर कोन रहे ……
ताश कोन पीटे ,बेवड़ा कोन बने …
आते-जाते को कोन ताके …
मेरा जाना हुआ शहर की ओर तो
ये तस्वीरे नजर आ ही गयी …
राजू चाचा ,धर्मपाल ताऊ ,रामफल भाई जी …
माँ की बतायी हर बात …सौ का तोड़ हुई …

नजर बस की ताकी से गाँव की कांकड़ पर गयी …
कुछ दुर कड़कड़ाती धुप में मिट्टी पलटती तस्वीरें
पसीना पौंछती तस्वीरें
जल्दी आ गया शहर से निपटा अपने धन्धें …
सुरज ढलने से पहले ही …

एक शोर सुना आंगन से चौखट पर आया …
वो ही तस्वीरे देखा जिन्हें सूरज की लाली के साथ
तसले भरे हुये घास-बालन से …
माँ आना …माँ बोली …
ये देख बेटा दिनभर बहाया पसीना …
ले आयी साथ बालन …
कच्ची ना रह जायें रोटीयाँ …
अभी हुकूमत भी बाकी है बेटा उन श्रीमानों की …
उन बेवड़ो कीं …कमाई में से भी कट कर आयेगा …
जब आयेगी कमाई बैंक में बेवड़ा साथ जायेगा …
मिलते ही आधे तो वो ही उड़ा ले जायेगा …………………………BENIWAL

Sunday 12 May 2013

खुली हों पलकें

आदत नजर

झुका कर चलने की ना

राहों पर ...

खुली हों पलकें

नजर तो आ ही जाता है ...

कुछ दिल को छू जाता है

कुछ दिल को कह जाता है

मौसम का मिजाज़ भी

पलभर में बदल जाता है

सड़क के किनारे नज़रें

टिक गयी दो पेडो के

बीच एक चद्दर का सहारा

तेज हवा का झोंका मेरी आँखों में रेत भर गया

संभाल कर खुद को देखा

देख प्राण से निकल गए मेरे

हवा ले गयी अपने साथ छत

उनके घर की …

दो छोटी जिंदगीयां ...

एक बड़ी जिन्दगी के सहारे

कचरे से भरे दो थैले

तेज गरजा ... कड़का …

आसमान में बिजली की तेज़ आवाज

बड़ी -बड़ी बुन्दें खड़ा हो सहारा ले लिया मैनें भी उसी पेड़ का

तेज़ ठण्डी हवा के थपेड़े … यूँ कहूँ सब डरावना …

दोनों माँ के लीपट गये …माँ ने अपने सर से

उतार दुपट्टा ढक लिया अपने लालों को…

कम्पकप्पी छुट गयी … माँ की …

बाल बिखर गये …फिर भी …

अलग ना किया जिगर से अपने टुकड़ों को ………………………… BENIWAL

समाजसेवी

मामूली  वक्त में 
अंधाधुंध तरीके से 
लुट कर हमें ...
समाजसेवी 
बनते लाखों  चहरे ...
रख  देते है 
कुछ रंगीन कागज़ 
बेबस तस्वीरों के हाथों में 
ठेका ले लेते है समाज 
संवारने का ....
ना जुबान सही न नजरें  
वो भी वाकिफ है 
कागाजों  के दम पर 
समाज ना संवरते  है 
जिद्द तो देखो इनकी ...
जिन्होंने कई पीढियाँ 
कर दी समाज के हवाले ...
लोहा कूटकर ,लकड़ी सँवार  कर 
हल जोत कर ,बाल सँवार  कर 
झाड़ु लगा कर , कपड़ा सिलकर 
पत्थर सँवार कर  .............. ये क्या है 
अगर वो समाज सेवा है तो ............................BENIWAL

Saturday 11 May 2013

माँ एक

माँ एक ..................................
सब की माँ 
ना मेरी न तुम्हारी माँ 
माँ एक ...शक्लें ,नाम अनेक  
माँ एक ...काम ,जगह अनेक 
माँ एक ...पहनावा ,भाषा अलग 
माँ एक ...परिस्थितियाँ अलग 
माँ एक ...कोख एक 
माँ एक ...बच्चे अनेक 
माँ एक ...प्यार एक 
माँ एक ...हंसी एक
माँ एक ... दूध एक 
माँ एक ...चोंच एक 
माँ एक ... नजर एक 
माँ एक ...झप्पी एक 
माँ एक ...माँ  एक ... माँ एक ....माँ एक  ...
मेरी माँ ...तुम्हारी माँ 
मेरी माँ से प्यारी आपकी माँ 
आपकी माँ से प्यारी मेरी माँ .....
कुछ  भी हो एक थी माँ ...एक है माँ .....एक रहेगी माँ .....BENIWAL



कमेड़ी

मेरी नजर मेरे
आसरे से …
सामने वाले आशियाने
पर गयी …
झट से उठ
सड़क पर आ गया …
आवाजें भी लगाई …
आवाज कानों तक ना गयी
शहरों में पता ना लोग
क्यों कान,आंख बन्द करके रखते है
चार्ज तो ना लगा आजतक
मेरी खुली आंखों, खुले कानों का
मेरा चिल्लाना बेकार गया …
साहस जुटा लांघ दी चारदीवारी …
चढ गया सीढ़ियॉ …चमचमाता मार्बल …
एक सुन्दर ,प्यारी कमेड़ी
दीवार और कीमती कांच
के बीच जंग जिन्दगी की लड़ रही थी
दो बार का प्रयास …हाथ ना आयी …
कितनी कोमल वो …थी …
तीसरी बार हाथों में गौर से देखा
त्वचा छिली हुई ,पंखें बिखर गयी ना जाने कितनी… आंखों में पानी …
ले गया छत पर …वो अब हाथों में ना रहना चाहती थी …
मैनें अपने हाथ हवा
में फैला दिये …मेरे पास से दो बार निकली
… मैनें तो आशीर्वाद जाना … दुआयें मानीं
दी ही होंगी … छ्त के चारों तरफ
रही कुछ वक्त …शायद कुछ भूल गयी हो …
फिर नजरों से ओझल ……
मुझे छ्त पर देख …एक शब्द सुना
बेटे आवाज लगा कर घर में आना चाहिये …
कान ,आंखें खोल कर घर में रहना चाहिये ………………
ज्यादा बहस का आशिक ना मैं
जिन्दगी के आगे नियमों के मायने ना ……………………………………BENIWAL

सुलगते धोरों

सुलगते धोरों
में हल,हलधर ,हलवाहक
लगें रहते हैं
वैशाख ,जैष्ठ …
आसरा दिन गुजारने का
खेजड़े के रुख़ नीचे झोपड़ी
एक कोने में रखा मटका
गीत गाती लू ……
हल की नोक से ऊड़ती धूल …
टपकता पसीना …
इंतजार किरणें सीधी होने का …
सब्र का दुसरा नाम हलधर
मालूम उसे भी है
ये जमीन सुलगती क्यों है …
पता है उसे कूलर की हवा का,
पर सो जाता है खेजड़े की ओट में
फ्रिज के ठंडे पानी का ,
पर पी लेता है मटके का पानी
ऐसी कमरों का ,
मखमली चदरों का ……
पर सो जाता है जलती रेत पर
लजीज खाने का
पर खा लेता एक एक प्याज
सुखी रोटी
धरती माँ की
इज्जत आबरू का रखवाला है
अपनी का का लाडला है वो …
हमारी बंजर आखों में कुछ भी हो
पागल ,गंवार,अनपढ,मूर्ख
ना जाने कितने नाम दे रखे है हमनें
उसे तो ये बादल ,आंधी ,तूफान,
सूरज , पाला ,,,,,,,,,,,,ना जाने कितने दुश्मन है
ये एकेला …
हम तो मत सता्यें …तरसायें इसको …
हम खुदा ना है …………………………………………………BENIWAL

टिटूड़ी

तपती रेत में …
दुर-दुर तक ना छाँव ,ना पानी
चढता सुरज …
एक सूखे पेड़
के तने के सहारे
घास- फूस की गोल
आकृति में…
तीन सफेद अण्डे …पेड़ की

एक टहनी पर पहरा टिटूड़ी का…

टकटकी आकृति पर लगाये …
इंतजार जैसे होता है सूखे तालाब को
बरसात का उसे इंतजार बस
कठोर परत हटने का …
सोयी नही वो कितनी अनमोल रातों में
नींद झलक रही है उसकी आँखों में
वो उसका घर था मैं राही उस रास्ते का
बढ आया मैं …
अपने घर की ओर …
फिर जाना हुआ उसी रास्ते से …
कुछ ले गया अपने घर से अनाज और पानी
आज शान्त ना थी वो
चक्कर पेड़ के चारों ओर्…
कुछ तो हुआ है …अनहोनी शायद
साहस जुटा कर पास पहुँचा
देख कर शतबद रह गया …
एक फूटा हुआ …एक गायब …
तीसरे पर खरोंचें …
मेरे सिर पर मंडराने लगी जोर-जोर से चिल्लाकर
अब टिटूड़ी
मंडराये भी क्यों ना
घटा भी कुछ ऐसा …कहाँ गलत वो बेचारी
मैंने तो जिद्द ना की …हट गया चुग्गा रख कर
कुछ घटा था उसके साथ तभी तो यहाँ आयी थी
वो भी जानती थी बाग-बगीचों का रास्ता
यहाँ भी आ गये …तपस्या भंग करने …
कुछ दिन बाद जाना हुआ …
नीचे पेड़ के नजरों को कुछ ना दिखा
मैनें सोचा क्या हुआ होगा …कहाँ गये दोनों अब
दिल तो यही बोला जहाँ भी रहे खुश रहे …
एक आवाज सुनी शायद यही कि ना हम अब उपर है
चुजे को कुछ खिला रही थी …वो अपनी चोंच से
कुछ पल मेरी ओर देख दोनों उड़ गये …
देखता रहा ………आज तक ना आये वापस ………………॥ BENIWAL

Wednesday 24 April 2013

आज अपने वतन
की हवा पानी
खाकर
बगावत अपने ही
वतन की करता हुँ
दुसरे मुल्कों
की वाहावाही
दिल खोल कर करता हुँ
खुद की हिम्मत
ना दो कदम
चलने की …
दुसरों की चाल
पर शक करता हुँ
खुद से लड़कर
देख
पता चल जायेगी
असलियत क्या
इस धरा पर
बेवजह शोर
ना मचा
रोक कौन रहा है राह तेरी
कुछ बदलने की है चाहत तो आना बाहर
पालतु पशु बनकर मत भौँक
आवारा पशु भी बहुत कुछ कर जाते है
आशिक आशिकी पर मिट सकते है
हालात सुधारने में तो बहादुर ही काम आते है …
उतर कर देख तो मैदान में
देखते है
साथ कौन नही आता है
परवाह अगर है वतन की
या तेरे पास फालतू शब्दों का गुब्बार है
तेरी जरुरत है
इस वक्त …अब देर ना कर